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Captain Gurbachan Singh Salaria: The Brave Param Vir Chakra Awardee - कैप्टन गुरबचन सिंह सालारिया: परमवीर चक्र से सम्मानित वीर योद्धा
Captain Gurbachan Singh Salaria |
कैप्टन गुरबचन सिंह सालारिया(Captain Gurbachan Singh Salaria) भारतीय सेना के ऐसे वीर योद्धा थे, जिन्होंने अपनी वीरता और साहस से देश का नाम रोशन किया। उन्हें 1961 में मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। संयुक्त राष्ट्र संघ की शांति सेना के सदस्य के रूप में कांगो में बेल्जियम के खिलाफ बहादुरी से लड़ते हुए उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दी। उस समय उनकी उम्र मात्र 26 वर्ष थी।
Captain Gurbachan Singh Salaria was a heroic soldier of the Indian Army who brought immense pride to the nation with his courage and sacrifice. He was posthumously awarded the Param Vir Chakra in 1961 for his extraordinary bravery during a United Nations peacekeeping mission in Congo. At the time of his martyrdom, he was only 26 years old.
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा(Early Life and Education)
गुरबचन सिंह सालारिया का जन्म 29 नवंबर 1935 को शकरगढ़ (अब पाकिस्तान में स्थित) के जनवल गाँव में हुआ था। उनके पिता ब्रिटिश-इंडियन आर्मी के डोगरा स्क्वाड्रन में नियुक्त थे। उनके पिता की बहादुरी और सैन्य सेवा ने गुरबचन को सेना में जाने के लिए प्रेरित किया।
Gurbachan Singh Salaria was born on November 29, 1935, in Jangwal village, Shakargarh (now in Pakistan). His father served in the Dogra Squadron of the British-Indian Army. Inspired by his father’s valor and military service, Gurbachan developed a keen interest in joining the armed forces.
गुरबचन की माँ एक साहसी महिला थीं, जिन्होंने अपने परिवार और बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए संघर्ष किया। गुरबचन का प्रारंभिक जीवन साधारण था, लेकिन उनमें बचपन से ही अनुशासन और साहस दिखता था।
His mother was a courageous woman who managed the household efficiently while focusing on her children’s future. From a young age, Gurbachan displayed discipline and courage, traits that would later define his life.
1946 में गुरबचन सिंह ने बैंगलोर के किंग जॉर्ज रॉयल मिलिट्री कॉलेज में दाखिला लिया। भारत की आजादी के बाद, 1947 में उनका स्थानांतरण कॉलेज की जालंधर शाखा में हो गया। इसके बाद उन्होंने 1953 में नेशनल डिफेंस अकादमी (NDA) में प्रवेश लिया और वहाँ से पास होकर सेना में कारपोरल रैंक प्राप्त की।
In 1946, Gurbachan enrolled at King George’s Royal Military College in Bangalore. After India’s independence, he was transferred to the Jalandhar branch of the same college in 1947. In 1953, he joined the National Defence Academy (NDA), where he excelled and graduated with the rank of Corporal, marking the beginning of his military career.
कैडेट जीवन की रोचक घटनाएँ(Notable Incidents During Cadet Life)
गुरबचन सिंह अपने स्कूल और कॉलेज के दिनों में आत्मसम्मान और साहस के प्रतीक माने जाते थे। एक बार एक मजबूत छात्र ने उन्हें परेशान करने की कोशिश की। गुरबचन सिंह ने उसे बॉक्सिंग के लिए चुनौती दी। यह मुकाबला सबके लिए रोचक बन गया। सभी को लगा कि गुरबचन हार जाएंगे, लेकिन रिंग में उन्होंने अपनी अद्भुत मुस्तैदी और साहस से विरोधी को हराकर सबको चौंका दिया।
During his school and college days, Gurbachan was known for his self-respect and bravery. Once, a strong and intimidating student tried to bully him. In response, Gurbachan challenged him to a boxing match. Despite everyone expecting Gurbachan to lose, he stunned everyone with his agility and determination, defeating his opponent in the ring.
एक अन्य घटना में, गुरबचन सिंह ने एक बच्चे को बचाने के लिए कुएँ में कूदने का साहस दिखाया। हालाँकि उन्हें तैरना नहीं आता था, लेकिन उनके दिल में दूसरों की मदद करने की भावना इतनी प्रबल थी कि वे खतरे से डरते नहीं थे। उनके साथियों ने उन्हें रोक लिया, लेकिन इस घटना ने उनकी मानवीयता को उजागर किया।
In another incident, a boy accidentally fell into a well. Although Gurbachan couldn’t swim, he showed an extraordinary willingness to jump in and rescue the boy. His peers managed to stop him, but the event showcased his innate compassion and fearless nature.
सैन्य जीवन की शुरुआत(Beginning of a Military Career)
नेशनल डिफेंस अकादमी से स्नातक होने के बाद, गुरबचन सिंह भारतीय सेना में शामिल हुए। उनकी प्रतिभा, साहस और नेतृत्व क्षमता ने उन्हें सेना में विशेष पहचान दिलाई। उन्हें संयुक्त राष्ट्र संघ की शांति सेना में सेवा करने का अवसर मिला।
After graduating from the National Defence Academy, Gurbachan Singh joined the Indian Army. His talent, courage, and leadership qualities soon made him a distinguished soldier. He was selected for a United Nations peacekeeping mission, an opportunity that highlighted his skills and dedication.
1961 में कांगो संकट के दौरान, गुरबचन सिंह को एक महत्वपूर्ण मिशन पर भेजा गया। यह मिशन न केवल कांगो में शांति स्थापित करने का था, बल्कि भारतीय सेना की प्रतिष्ठा को बनाए रखने का भी एक अवसर था।
In 1961, during the Congo Crisis, he was assigned a critical mission. This mission was not just about maintaining peace in Congo but also about upholding the honor of the Indian Army.
कांगो में अद्भुत पराक्रम(Exceptional Bravery in Congo)
कांगो में बेल्जियम के उपनिवेशवादियों और कांगो सेना के बीच संघर्ष चल रहा था। संयुक्त राष्ट्र संघ की शांति सेना में भारत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कैप्टन गुरबचन सिंह को कांगो के एलिज़ाबेथ विला क्षेत्र में एक कठिन ऑपरेशन का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी सौंपी गई।
The Congo Crisis involved a conflict between Belgian colonists and the Congolese forces. India played a significant role in the United Nations peacekeeping mission, with Captain Gurbachan Singh leading an important operation in the Elizabethville region.
5 दिसंबर 1961 को, उन्होंने दुश्मन के खिलाफ अद्वितीय वीरता का प्रदर्शन किया। अपने छोटे से दस्ते के साथ, उन्होंने दुश्मन पर हमला किया और उन्हें पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। इस लड़ाई में, उन्होंने अद्भुत साहस और रणनीतिक कौशल दिखाया।
On December 5, 1961, Captain Salaria and his small team launched an attack on the enemy forces. Despite being outnumbered, they managed to force the enemy to retreat. During this fierce battle, Captain Salaria displayed remarkable courage and strategic brilliance.
दुश्मन की संख्या अधिक थी, लेकिन कैप्टन सालारिया ने अपने साथियों के साथ अंतिम साँस तक संघर्ष किया। इस बहादुरी के लिए उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार, परमवीर चक्र, से सम्मानित किया गया।
Fighting until his last breath, Captain Salaria became a symbol of bravery. For his supreme sacrifice and exceptional valor, he was posthumously awarded India’s highest military honor, the Param Vir Chakra.
कैप्टन गुरबचन सिंह की प्रेरणा(Inspiration from Captain Salaria)
कैप्टन सालारिया का जीवन साहस, नेतृत्व और देशभक्ति की अद्भुत मिसाल है। उनके पिता की सैन्य पृष्ठभूमि और माँ की कठिनाइयों ने उन्हें मजबूत बनाया। गुरबचन सिंह ने हर चुनौती का सामना आत्मविश्वास और धैर्य के साथ किया।
Captain Salaria’s life is a testament to courage, leadership, and patriotism. Inspired by his father’s military background and his mother’s resilience, Gurbachan Singh faced every challenge with determination and confidence.
उनकी कहानी युवा पीढ़ी को प्रेरित करती है कि कैसे अनुशासन, मेहनत और साहस से असंभव को संभव बनाया जा सकता है।
His story motivates the youth to understand how discipline, hard work, and bravery can turn ordinary lives into extraordinary ones.
कैप्टन सालारिया का योगदान(Contributions of Captain Salaria)
- भारतीय सेना की प्रतिष्ठा बढ़ाई: कांगो में अपने साहसिक कार्यों से उन्होंने भारतीय सेना की प्रतिष्ठा को नई ऊँचाई पर पहुँचाया। Enhanced India’s Military Reputation: His courageous actions in Congo elevated the prestige of the Indian Army.
- संयुक्त राष्ट्र में भारत की भूमिका को सशक्त किया: उनकी वीरता ने संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की भूमिका को मजबूती दी। Strengthened India’s Role in the United Nations: His bravery emphasized India’s significant contribution to international peacekeeping efforts.
- युवाओं के लिए प्रेरणा: उनका जीवन युवाओं को यह सिखाता है कि निडरता और सेवा का जज्बा कैसे किसी व्यक्ति को महान बना सकता है। Role Model for Youth: His life serves as an inspiration for young people to embrace fearlessness and the spirit of service.
निष्कर्ष(Conclusion)
कैप्टन गुरबचन सिंह सालारिया का जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्चे देशभक्त न केवल अपने लिए बल्कि अपने देश और समाज के लिए जीते हैं। उनके बलिदान ने भारत को गौरवान्वित किया और उनके साहसिक कार्य हमेशा प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे।
Captain Gurbachan Singh Salaria’s life teaches us that true patriots live not just for themselves but for their nation and society. His sacrifice brought glory to India, and his heroic deeds remain an eternal source of inspiration.
On his birth anniversary, let us honor his courage, dedication, and patriotism by striving to make our lives more meaningful.
जय हिंद!
Jai Hind!
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